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रविवार, 27 नवंबर 2011

आरती और पूजा

Quote - osho
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     जिसके चरणों में चढ़ने को -- शत शत सागर उमड़े आते -- उसको नीर चढ़ाऊं कैसे--
          जिसकी पूजा में जलने को -- कितने सूर्य सितारे जलते -- उसको दिया दिखाऊँ कैसे --
     जिसकी आरती की थाली बन कर -- गृह नक्षत्र भी घूम रहे हैं -- उसको थाल घुमाऊँ कैसे --
          मन का गीत सुनाऊँ कैसे ......
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मुझे ईश्वर में बहुत विश्वास है - वैसे इस ब्लॉग का लिंक जिन्हें भी भेजा है, वे सभी बहुत विश्वास रखते हैं , एक्सेप्ट उम दीदी और जीजाजी ... जो स्टऔंच नॉन बिलीवर्स हैं .... |  पर मैं आरती पूजा ज्यादा नहीं करती - कोई खास ऐसी अनास्था भी नहीं है, पर ना जाने क्यों, बहुत कोशिश करने पर भी मन में रिचुअल्स को फोलो करने कि इच्छा ही नहीं जागती | ऐसा नहीं कि बिलकुल ही नहीं करती - पर सिर्फ तीज त्यौहारों पर ही करती हूँ - हर रोज़ नहीं |  ... वैसे मेरे कई ऐसे दोस्त हैं - जो पूरे रिचुअल्स के साथ बड़ी आस्था से पूजा करते हैं - पर पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि उनके लिए  वह पूजा का तरीका ठीक है - मेरे लिए नहीं  (और इस वक़्त मैं बहुत निकट के दोस्तियों कि बात कर रही हूँ, ऐसी ही हेलो हाई वाली दोस्तियों की बात नहीं ...)

मेरे लिए प्रार्थना एक बहुत ही वैयक्तिक मसला है - जो किसी और के बताने से नहीं, बल्कि अपने मन के बताये तरीके से ही सही हो सकता है | हमारे धर्म में पूजा ज्यादातर आरती को ही कहा जाता है - धूप और दिए को जलाकर, भगवन कि मूरत को पानी का अर्ध्य देकर, उनके आगे आरती कि थाली घुमाते हुए घंटियों कि मधुर धुन के साथ घर घर में आरती हुआ करती थी ... अब कम हो गया है ये प्रचलन, पर होता अब भी है | मैं यह बात बिलकुल नहीं कर रही कि यह सही तरीका है, या नहीं है | क्योंकि मेरे लिए पूजा है मेरे कृष्ण के साथ बातें करना - जस्ट स्पेंडिंग सम टाइम विद हिम, ना कुछ मांगना, ना शिकायतें, ना जिद, ना उसे बताना कि वो अपनी समझ से जो मेरे लिए कर रहा है - वो किस किस कारण से गलत है - और वो कैसे अपने प्लान्स को सुधारे, जिससे मैं खुश रहूँ .....

अब आप ये ना सोचे कि मैं उससे कभी कुछ मांगती नहीं हूँ - ज़रूर मांगती हूँ, जिद भी कर लेती हूँ - और कभी कभी रूठ भी जाती हूँ - पर इस सारे खेल को मैं पूजा नहीं मानती  ....... ये तो एक बच्चे की जिद है जो वो अपने पम्पेरिंग एल्डर्स से कैसे भी रो पीट कर मनवा ही लेता है | फिर जिस चीज़ की जिद वह पूरी करवा रहा है - वह उसके लिए अच्छी है या नहीं - ये तो वो जानता नहीं .... और पेरेंट्स जानते भी हैं तो बच्चे के लाड प्यार में कभी कभी उसे जो ना मिलना हो, वह भी उसे दिलवा देते हैं| पर इसे माता पिता का लाड प्यार और पम्पेरिंग कहा जाता है, बच्चे की पूजा नहीं!!!

टु मी - प्रेयर इज़ एन अनकंडिशनल एंड जोय्फुल एक्सेप्टेंस - ऑफ़ व्हाटेवर वन हेज़ बीन ग्रैंटेड  ...... विद नो डीमान्ड्स, नो ओब्जेकशंस | और , आरती के बारे में ..... कुछ धुंधले से शब्द याद आ रहे हैं - ओशो के प्रवचनों में ही सुने थे कभी .... कुछ इस तरह की बात थी,  कि, आरती की किस तरह जाए ?

जिसके चरणों में चढ़ने को -- शत शत सागर उमड़े आते -- उसको नीर चढ़ाऊं कैसे-- 
          जिसकी पूजा में जलने को -- कितने सूर्य सितारे जलते -- उसको दिया दिखाऊँ कैसे --
जिसकी आरती की थाली बन कर -- गृह नक्षत्र भी घूम रहे हैं -- उसको थाल घुमाऊँ कैसे --  
         मन का गीत सुनाऊँ कैसे ......

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